आशा लिख रहा है
आज महीनों बाद आपके बीच अपनी एक कविता ले कर आया हूं,
इस त्रासद काल में जब वक्त बेहद क्रूर हो चला है मौत का नंगा नृत्य जारी है
और समय पहाड़ से भी भारी है ऐसे में अपने भी मुंह मोड़ने लगे हैं नाते तोड़ने लगे हैं
रिश्तो की बुनियाद एकबारगी हिलने लगी है
इसी कसक और पीड़ा को अपनी कविता में जिया है मैंने
कविता का शीर्षक है आशा लिख रहा है
सुरेश वर्मा
सीतामढ़ी
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May 30, 2021
3 min
जीवन और मर्म की धड़कनो की समाहित करने वाला ये कविता उस हर व्यक्ति से सम्बन्ध रखता है जो अपने जीवन में बहुत आभाव को देखा है परन्तु वो अपने बच्चो को ऐसे आभाव में नहीं देखना चाहत। इसमें एक पिता की कैसे विवश है अपने बच्चो के लिए। वही एक पुत्र अपने पिता के बीच का संवाद भी है।
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Dec 21, 2020
2 min
इस कविता में, पिताजी अपने शब्दों से एक कविता से बात कर रहे है।
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Oct 18, 2020
2 min
इस कविता में मेरे पिता अपने पिता यानि दादाजी "बाबा" को याद कर रहे है। बेहद मार्मिक तरह से शब्दों को पिरोया गया इस कविता को सुन के मेरे आँख भी नम हो गयी।
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Oct 8, 2020
2 min
ये कविता मेरे पिता अपने बचपन को याद करते लिखा है, ऐसा शायद उस दौर में आम बात रही होगी लेकिन सोचने वाली बात है हम लोग ने अपने जीवन को एक राजकुमार के जैसा जिया है लेकिन हमारे जीवन के असली नायक किस किस अभाव को झेला है। ये कविता जीवन की यात्रा को बताती है।
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Oct 7, 2020
5 min
ये कविता मेरे पिताजी श्री सुरेश वर्मा "नीलकंठ" ग्राम बेलाही नीलकंठ के द्वारा लिखा हुआ और उनके आवाज में ही आपको प्रस्तुत कर रहा हू।
उम्मीद करता हूँ इस कविता से बहुत लोग खुद के जुड़ा महसूस करेंग। ऐसे उनके अनेक रचनाये है जिन्हे लाने की कोशिश है मेरे तरफ से।
आपके स्नेह का इंतजार रहेगा ।
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Oct 7, 2020
3 min